Tuesday, 17 May 2016

राजुला मालुशाही: एक अमर प्रेम कथा

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हिमालय का सौन्दर्य जितना आकर्षक है उतनी ही सुन्दर प्रेम कहानियां यहां की लोक कथाओं और गीतों में दिखाई देती हैं। उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में प्रेम कहानियां लोकगथाओं के रूप में जन जन तक पहुंची हैं, हालांकि यह अधिकतर राजघरानों से जुड़ी हैं लेकिन वह आम आदमी तक प्यार का संदेश छोड्ने में कामयाब रही हैं, हरूहीत और जगदेच पंवार की कहानी तो है ही रामी बौराणी का अपने पति के इंतजार में सालों गुजारना उसके समर्पण को दर्शाता है, इन सबसे बढ्कर राजुला मालूशाही की अमर प्रेम कथा है जो प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। उत्तराखण्ड की लोककथाओं में प्रेम कथाओं का विशेष महत्व हें यह लोक गाथाओं के रूप में गाई जाती है, हालांकि अलग अलग हिस्सों में इन कहानियों को अपनी तरह से लोक गायकों ने प्रस्तुत किया है लेकिन जब समग्रता से इसे देखते हैं तो कुछ कहानियां ऐसी हैं जिन्होंने उन पात्रों को आज भी गांवों में जीवंत रखा है। यहां प्रचलित कहानियों की पृष्ठभूमि में विषम भौगोलिक परिस्थितियों से उपजी दिक्क्तें साफ झलकती हैं। राजुला मालूशाही की गाथा कितनी अमर है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है साइबर युग में जहां प्रेम की बात संचार माध्मों से हो रही हो वहां भोट की राजुला का वैराट, चौखुटिया आने और मालूशाही का भोट की कठिन यात्रा प्रेमियों का आदर्श है।
कुमाऊं और गढ्वाल में प्रेम गाथायें झोड़ा, चांचरी, भगनौले और अन्य लोक गीतों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सुनी सुनाई जाती रही हैं, मेले इनको जीवन्त बनाते हैं। राजुला मालूशाही पहाड् की सबसे प्रसिद्व अमर प्रेम कहानी है। यह दो प्रेमियों के मिलन में आने वाले कष्‍टों, दो जातियों, दो देशों, दो अलग परिवेश में रहने वाले प्रेमियों की कहानी है। सामाजिक बंधनों में जकड़े समाज के सामने यह चुनौती भी थी। यहां एक तरफ बैराठ का संपन्न राजघराना है, वहीं दूसरी ओर एक साधारण व्‍यापारी, इन दो संस्कृतियों का मिलन आसान नहीं था। लेकिन एक प्रेमिका की चाह और प्रेमी का समर्पण पेम की एक ऐसी इबारत लिखता है जो तत्‍कालीन सामाजिक ढ्ाचे को तोड्ते हुए नया इतिहास बनाती है।
राजुला मालूशाही की जो लोकगाथा प्रचिलत है वह इस प्रकार है- कुमांऊं के पहले राजवंश कत्‍यूर के किसी वंशज को लेकर यह कहानी है, उस समय कत्‍यूरों की राजधानी बैराठ वर्तमान चौखुटिया थी। जनश्रुतियों के अनुसार बैराठ में तब राजा दुलाशाह शासन करते थे, उनकी कोई संतान नहीं थी, इसके लिए उन्‍होंने कई मनौतियां मनाई। अन्त में उन्‍हें किसी ने बताया कि वह बागनाथ (बागेश्वर) में शिव की अराधना करे तो उन्‍हें संतान की प्राप्‍ति हो सकती है। वह बागनाथ के मंदिर गये वहां उनकी मुलाकात भोट के व्‍यापारी सुनपत शौका और उसकी पत्‍नी गांगुली से हुई, वह भी संतान की चाह में वहां आये थे। दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड्का और लड्की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देंगें। ऐसा ही हुआ भगवान बागनाथ की कृपा से बैराठ के राजा का पुत्र हुआ, उसका नाम मालूशाही रखा गया। सुनपत शौका के घर में लडकी हुई, उसका नाम राजुला रखा गया। समय बीतता गया, जहां बैराठ में मालू बचपन से जवानी में कदम रखने लगा वहीं भोट में राजुला का सौन्‍दर्य लोगों में चर्चा का विषय बन गया। वह जिधर भी निकलती उसका लावण्य सबको अपनी ओर खींचता था।
पुत्र जन्म के बाद राजा दोलूशाही ने ज्योतिषी को बुलाया और बच्चे के भाग्य पर विचार करने को कहा। ज्योतिषी ने बताया कि “हे राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्प मृत्यु का योग है, इसका निवारण करने के लिये जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से करना होगा।” राजा ने अपने पुरोहित को शौका देश भेजा और उसकी कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपति तैयार हो गये और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही के साथ कर दिया। लेकिन विधि का विधान कुछ और था, इसी बीच राजा दोलूशाही की मृत्यु हो गई। इस अवसर का फायदा दरबारियों ने उठाया और यह प्रचार कर दिया कि जो बालिका मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई, अगर वह इस राज्य में आयेगी तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिये मालूशाही से यह बात गुप्त रखी जाये।
धीरे-धीरे दोनों जवान होने लगे….राजुला जब युवा हो गई तो सुनपति शौका को लगा कि मैंने इस लड़की को रंगीली वैराट में ब्याहने का वचन राजा दोलूशाही को दिया था, लेकिन वहां से कोई खबर नहीं है, यही सोचकर वह चिंतित रहने लगा।
एक दिन राजुला ने अपनी मां से पूछा कि
” मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?”
उसकी मां ने उत्तर दिया ” दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीली वैराट”
तब राजुला धीमे से मुस्कुराई और उसने अपनी मां से कहा कि ” हे मां! मेरा ब्याह रंगीले वैराट में ही करना। इसी बीच हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपति शौक के यहां आया और उसने अपने लिये राजुला का हाथ मांगा और सुनपति को धमकाया कि अगर तुमने अपनी कन्या का विवाह मुझसे नहीं किया तो हम तुम्हारे देश को उजाड़ देंगे। इस बीच में मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रुप को देखकर मोहित हो गया और उसने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर ले जाऊंगा। यही सपना राजुला को भी हुआ, एक ओर मालूशाही का वचन और दूसरी ओर हूण राजा विखीपाल की धमकी, इस सब से व्यथित होकर राजुला ने निश्च्य किया कि वह स्व्यं वैराट देश जायेगी और मालूशाही से मिलेगी। उसने अपनी मां से वैराट का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी मां ने कहा कि बेटी तुझे तो हूण देश जाना है, वैराट के रास्ते से तुझे क्या मतलब। तो रात में चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर राजुला रंगीली वैराट की ओर चल पड़ी।
वह पहाड़ों को पारकर मुनस्यारी और फिर बागेश्वर पहुंची, वहां से उसे कफू पक्षी ने वैराट का रास्ता दिखाया। लेकिन इस बीच जब मालूशाही ने शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात की तो उसकी मां ने पहले बहुत समझाया, उसने खाना-पीना और अपनी रानियों से बात करना भी बंद कर दिया। लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे बारह वर्षी निद्रा जड़ी सुंघा दी गई, जिससे वह गहरी निद्रा में सो गया। इसी दौरान राजुला मालूशाही के पास पहुंची और उसने मालूशाही को उठाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह तो जड़ी के वश में था, सो नहीं उठ पाया, निराश होकर राजुला ने उसके हाथ में साथ लाई हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने में रख दिया और रोते-रोते अपने देश लौट गई। सब सामान्य हो जाने पर मालूशाही की निद्रा खोल दी गई, जैसे ही मालू होश में आया उसने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी तो उसे सब याद आया और उसे वह पत्र भी दिखाई दिया जिसमें लिखा था कि ” हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता अब मुझे वहीं ब्याह रहे हैं।” यह सब देखकर राजा मालू अपना सिर पीटने लगे, अचानक उन्हें ध्यान आया कि अब मुझे गुरु गोरखनाथ की शरण में जाना चाहिये, तो मालू गोरखनाथ जी के पास चले आये।
गुरु गोरखनाथ जी धूनी रमाये बैठे थे, राजा मालू ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि मुझे मेरी राजुला से मिला दो, मगर गुरु जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसके बाद मालू ने अपना मुकुट और राजसी कपड़े नदी में बहा दिये और धूनी की राख को शरीर में मलकर एक सफेद धोती पहन कर गुरु जी के सामने गया और कहा कि हे गुरु गोरखनाथ जी, मुझे राजुला चाहिये, आप यह बता दो कि मुझे वह कैसे मिलेगी, अगर आप नहीं बताओगे तो मैं यही पर विषपान करके अपनी जान दे दूंगा। तब बाबा ने आंखे खोली और मालू को समझाया कि जाकर अपना राजपाट सम्भाल और रानियों के साथ रह। उन्होंने यह भी कहा कि देख मालूशाही हम तेरी डोली सजायेंगे और उसमें एक लडकी को बिठा देंगे और उसका नाम रखेंगे, राजुला। लेकिन मालू नहीं माना, उसने कहा कि गुरु यह तो आप कर दोगे लेकिन मेरी राजुला के जैसे नख-शिख कहां से लायेंगे? तो गुरु जी ने उसे दीक्षा दी और बोक्साड़ी विद्या सिखाई, साथ ही तंत्र-मंत्र भी दिये ताकि हूण और शौका देश का विष उसे न लग सके।
तब मालू के कान छेदे गये और सिर मूड़ा गया, गुरु ने कहा, जा मालू पहले अपनी मां से भिक्षा लेकर आ और महल में भिक्षा में खाना खाकर आ। तब मालू सीधे अपने महल पहुंचा और भिक्षा और खाना मांगा, रानी ने उसे देखकर कहा कि हे जोगी तू तो मेरा मालू जैसा दिखता है, मालू ने उत्तर दिया कि मैं तेरा मालू नहीं एक जोगी हूं, मुझे खान दे। रानी ने उसे खाना दिया तो मालू ने पांच ग्रास बनाये, पहला ग्रास गाय के नाम रखा, दूसरा बिल्ली को दिया, तीसरा अग्नि के नाम छोड़ा, चौथा ग्रास कुत्ते को दिया और पांचवा ग्रास खुद खाया। तो रानी धर्मा समझ गई कि ये मेरा पुत्र मालू ही है, क्योंकि वह भी पंचग्रासी था। इस पर रानी ने मालू से कहा कि बेटा तू क्यों जोगी बन गया, राज पाट छोड़कर? तो मालू ने कहा-मां तू इतनी आतुर क्यों हो रही है, मैं जल्दी ही राजुला को लेकर आ जाऊंगा, मुझे हूणियों के देश जाना है, अपनी राजुला को लाने। रानी धर्मा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन मालू फिर भी नहीं माना, तो रानी ने उसके साथ अपने कुछ सैनिक भी भेज दिये।
मालूशाही जोगी के वेश में घूमता हुआ हूण देश पहुंचा, उस देश में विष की बावडियां थी, उनका पानी पीकर सभी अचेत हो गये, तभी विष की अधिष्ठात्री विषला ने मालू को अचेत देखा तो, उसे उस पर दया आ गई और उसका विष निकाल दिया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुंचा, वहां बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विक्खी पाल राजुला को ब्याह कर लाया था। मालू ने अलख लगाई और बोला ’दे माई भिक्षा!’ तो इठलाती और गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली ’ले जोगी भिक्षा’ पर जोगी उसे देखता रह गया, उसे अपने सपनों में आई राजुला को साक्षात देखा तो सुध-बुध ही भूल गया। जोगी ने कहा- अरे रानी तू तो बड़ी भाग्यवती है, यहां कहां से आ गई? राजुला ने कहा कि जोगी बता मेरी हाथ की रेखायें क्या कहती हैं, तो जोगी ने कहा कि ’मैं बिना नाम-ग्राम के हाथ नहीं देखता’ तो राजुला ने कहा कि ’मैं सुनपति शौका की लड़की राजुला हूं, अब बता जोगी, मेरा भाग क्या है’ तो जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा ’चेली तेरा भाग कैसा फूटा, तेरे भाग में तो रंगीली वैराट का मालूशाही था’। तो राजुला ने रोते हुये कहा कि ’हे जोगी, मेरे मां-बाप ने तो मुझे विक्खी पाल से ब्याह दिया, गोठ की बकरी की तरह हूण देश भेज दिया’। तो मालूशाही अपना जोगी वेश उतार कर कहता है कि ’ मैंने तेरे लिये ही जोगी वेश लिया है, मैं तुझे यहां से छुड़ा कर ले जाऊंगा’।
तब राजुला ने विक्खी पाल को बुलाया और कहा कि ये जोगी बड़ा काम का है और बहुत विद्यायें जानता है, यह हमारे काम आयेगा। तो विक्खीपाल मान जाता है, लेकिन जोगी के मुख पर राजा सा प्रताप देखकर उसे शक तो हो ही जाता है। उसने मालू को अपने महल में तो रख लिया, लेकिन उसकी टोह वह लेता रहा। राजुला मालु से छुप-छुप कर मिलती रही तो विक्खीपाल को पता चल गया कि यह तो वैराट का राजा मालूशाही है, तो उसने उसे मारने क षडयंत्र किया और खीर बनवाई, जिसमें उसने जहर डाल दिया और मालू को खाने पर आमंत्रित किया और उसे खीर खाने को कहा। खीर खाते ही मालू मर गया। उसकी यह हालत देखकर राजुला भी अचेत हो गई। उसी रात मालू की मां को सपना हुआ जिसमें मालू ने बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूं। तो उसकी माता ने उसे लिवाने के लिये मालू के मामा मृत्यु सिंह (जो कि गढ़वाल की किसी गढ़ी के राजा थे) को सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ के साथ हून देश भेजा।
सिदुवा-विदुवा रमोल के साथ मालू के मामा मृत्यु सिंह हूण देश पहुंचे, बोक्साड़ी विद्या का प्रयोग कर उन्होंने मालू को जीवित कर दिया और मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगाया और फिर इसके सैनिको ने हूणियों को काट डाला और राजा विक्खी पाल भी मारा गया। तब मालू ने वैराट संदेशा भिजवाया कि नगर को सजाओ मैं राजुला को रानी बनाकर ला रहा हूं। मालूशाही बारात लेकर वैराट पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम से शादी की। तब राजुला ने कहा कि ’मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी राजुला हूं और जो दस रंग का होगा मैं उसी से शादी करुंगी। आज मालू तुमने मेरी लाज रखी, तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो। अब दोनों साथ-साथ, खुशी-खुशी रहने लगे और प्रजा की सेवा करने लगे। यह कहानी भी उनके अजर-अमर प्रेम की दास्तान बन इतिहास में जड़ गई कि किस प्रकार एक राजा सामान्य सी शौके की कन्या के लिये राज-पाट छोड़्कर जोगी का भेष बनाकर वन-वन भटका।
Admin-Deepp Negi

Saturday, 22 August 2015

10 Reasons Which Prove Burans Flower is Good Medicine for Health care

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Himalaya is abode to various plants with medicinal use. Rhododendron arboreum tree from the valley of Himalayas known for its bright scarlet red bell shaped flowers filled with sweet nectar, is one such tree with medicinal uses. Flowers and leaves of this tree have been long for medicinal purposes. Commonly known as Burans, juice made from its flowers is very popular beverage in the region.

1- Burans as anti-inflammatory - Various Ayurvedic and homeopathic medicines have used burans flowers and leaves for treating body inflammation and treat gout, rheumatism, bronchitis and arthritis. Lab studies with Rhododendron arboreum showed significant anti-inflammatory properties. Animal studies showed ability of burans flower extract to cure paw edema in rats.

2- Burans with pain killing ability-: Young leaves of Rhododendron arboreum have been traditionally used in treating headache. Paste made from tree leaves is applied to forehead to relieve head ache.

3- Burans as an antioxidant - : Various phytochemcials have been isolated from Burans leaves and flower which have high antioxidant properties. They exhibit beneficial property in getting rid of harmful free radicals in body.

5- Burans good for diabetes- : Local people from Nepal have been using burans flower for treating diabetes. Latest studies have confirmed anti-diabetic potential of burans flower and suggested its uses as functional food in treating type I and type II diabetes. Methanol extract of burans flower have showed in-vitro anti-diabetic activity suggesting its potential in development of new medicines for diabetes.

6- Burans to treat diarrhea - Traditionally flowers and leaves of burans tree have been used as home remedy over diarrhea and dysentery. Dried petals powder and paste of dried leaves powder are found helpful in relieving diarrhea. Lab studies with ethyl acetate extract of burans flowers showed potential antidiarrheal activity. Similarly animal studies showed effectiveness of burans flower extract in treating castor oil and magnesium sulfate induced diarrhea in rats.

7- Antimicrobial property of Rhododendron arboreum - Flowers and leaves of Rhododendron arboreum contain wide range of phtytochemical many of them have independently reported antimicrobial properties.

8- Burans flower juice good for heart - You would find locals saying how burans flower juice is good for heart. It helps in lowering blood pressure and bad cholesterol. Various phytochemicals in burans flower juice offer antioxidant property and protect heart from oxidative stress and reduces risk of stroke and other heart disorders.

9- Burans flower juice to protect liver - Burans flower have been used in Ayurvedic medicinal forms to reduce cholesterol and as liver tonic. Animal studies with rats showed that alcoholic extract of burans flower and leaves was helpful in preventing liver damage by carbon tetracholoride intoxication.

10- Burans and prevention of cancer - Key phtochemicals have been isolated from burans flower which independently have established their ability in preventing cancer. Quercetin and Rutin present in burans flower inhibits growth of cancer cells and reduces risk of cancer. Together with other phytochemcials they offer antioxidant properties which prevents damage of body cells leading to mutation and development of cancer.


Friday, 12 June 2015

Binsar mahaadev trample - Ranikhet

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बिनसर महादेव मंदिर एक लोकप्रिय हिंदू मंदिर रानीखेत से लगभग 15 किमी की दूरी पर स्थित है। समुद्र स्तर से 2480 मीटर की ऊंचाई पर बना यह मंदिर हरे-भरे देवदार के जंगलों से घिरा हुआ है। हिंदू भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 10 वीं सदी में किया गया था। मान्यताओं के अनुसार, सिर्फ एक दिन में इस मंदिर का निर्माण किया गया था।

कई महिलाएं 'वैकुंठ चतुर्दशी' के शुभ अवसर पर इस मंदिर में आती हैं, यहां वे अपनी हथेली पर एक जलता हुआ चिराग रख कर बच्चे के लिए प्रार्थना करती हैं। महेशमर्दिनी, हर गौरी और गणेश के रूप में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ निहित, इस मंदिर की वास्तुकला शानदार है।

महेशमर्दिनी की मूर्ति पर नागरीलिपि में शब्द खुदे हुए हैं, जो 9 वीं सदी की ओर वापस ले जाते हैं। यह मंदिर बिंदेश्वार मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, जिसका निर्माण राजा पिथू ने अपने पिता की स्मृति में कराया था। पिता का नाम बिंदु था।

Wednesday, 10 June 2015

The Mini Switzerland of Uttarakhand - Chopta

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The mini switzerland of uttarakhand - Chopta

Chopta is famus known as "Mini Switzerland", of Uttrakhand and is obtaining in style as a traveller destination since previous few years. Chopta hill station is located within the Rudraprayag district of Uttarakhand state at associate placed at associate altitute of 2600 mts on top of water level amidst dense forest. fascinating views of the Himalayas is visible from Chopta.chopta is that the heaven of garhwal.it has inexperienced meadows each wherever with snow clad mountains close them.it is forty kms from gopeshwer two hrs drive.
chopta- the real haven

              Chopta is that the initiation purpose of the trek to famed Tungnath Mandir (one of the Panch- Kedars) and summit Chandrashila. The region is wealthy in varied flora and fauna, with many shrub and Cedrus deodara trees all around.
            Chopta may be a terribly terribly lovely place in chamoli district of garhwal,uttarakhand.it is regarding 8000mts on top of water level.There square measure several immense meadows enclosed by snow peaks of Himalaya.
After several stoppages and dragging ourselves, shining was back in our eyes as we saw our first destination a few steps away. We were filled with energy as we approached near and finally we were standing at Tungnath. I raised my both hands with smile on my face as I reached there like I have won a race competition in Olympics. Only thing missing was the cheering crowd. We relaxed ourselves and had some water which the priest of the Tungnath temple provided to us. Tungnath temple was closed as it only opens from June to September. Still we prayed for the peace and I did some photography and looked down the valley. I had never seen anything remotely beautiful to this. We all spent the most peaceful time there as it was a lifetime experience. It was so peaceful that you can only hear the air whispering in your ears.

 We all lied down on the lush green grass of the meadows and looked at the sky and enjoyed the peace. It was 1 in the noon and we decided to move further to Chandrashila which was 1 km ahead. Priest of the temple told us that track to Chandrashila is more difficult. "Well, let it be" we said and moved on to Chandrashila. As we started to move towards Chandrashila, it was actually quite difficult and air was even more drier. The speed of wind up there was so much that I felt like it is going to push me off the valley. That 1 km trek was the most difficult trek ever as we all climbed quietly. After dragging our bodies to the final destination, it was all worth it. The experience was just out of the world. We all stood there for few minutes quietly and looked at t he the valley. I have no words to express those beautiful moments.

Tuesday, 2 June 2015

Girija Devi (Garjiya Mata )Temple Ramnager - Best Holy Place Ramnagar

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On the road at a distance of 10 Km from Ramnagar Dikala Girija Devi, mother of a place called Grgia are known. Girija Devi, the daughter of the Himalayas and (Wife) Arddhagini Shiva.  This temple is situated on a mound between rivers. The year 1940 in the subject of this temple was very well-known, currently numbering millions of devotee’s pleased Girija mata Tample reached. In 1970 the temple was constructed in a systematic manner. The temple has been significant efforts to present the priest Pan0 poornachandra Pandey. To gain insights into the temple it is necessary to know the historical and religious background.

Historical background

Archeology of the ancient settlement of Kurmancl Dikuli statement that was near where the current is settled Ramnagar. The name of this town nestled on the banks of Kosi port or Varatnagr Varat was then. Ktyuri Kuru dynasty of kings, king of the state of the former were the first, the ancient Indraprastha (modern Delhi) lived under the umbrella of the empire.


Ethnic background

Public recognition prior to the year 1940, the area was full of fierce jungle, first Forest former employees of the Department and the statues on the mound by local residents saw sporadic and realized her mother Jagjanani presence on the spot. Solitary secluded wooded area Kosi strong stream running down the hill, up the hill to climb up through straw, wild animals, despite fierce roared devotees started coming to this place for the mother's philosophy. Forest officials then came on here, it is said that the fierce lion roared at the hill used vehicle of Goddess Durga. Lions are often round the mound was also seen by people.
Girija (Wife )Ardhangini name of Lord Shiva Parvati is also the daughter of the Himalayan massif is called by this name. Satoguni Girija Devi Temple as the mother is present. Are pleased with the true faith, here coconut coir, red cloth, vermilion, incense, lamp etc. Vandana is boarded. Wishes to offer complete devotees call or parasol. At this firm newly married women pray for the wedding. Childless couple won stages in mother-child spread of receipt.
Mother Ganga on the auspicious occasion of Kartik Purnima bath Views and retrograde acknowledgment of Girija Devi Koushiki (Kosi) river is overflowing crowd in the huge number of devotees Snanartha. Additionally Ganga Dussehra, Durga Neo, Shivaratri, Uttarayani, is visited by a large number of Basant Panchami. Under the legislation, to worship Goddess worship after Girija Bhairon Baba (the mother is at the core institution) rice and mass (urad dal) exaggerated worship is considered necessary, is said to worship Bhairav after the worship of the mother goddess of the Church receive the entire Fruits.

Top 5 Hill Station of Pauri Garwhal For Tourist and Travel Attrection

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Pauri Garwhal is Famus for nature Beauty and Himalaya. In Pauri Garwhal many Beautiful Palaces for Tour and Tourist. and many Top Hill Station in Pauri Garwhal Like Pauri, Khirsu, Lansdowne, Hemkund Sahib etc. 

 1. - Khirsu –Khirsu is one of the best peaceful Hill Station of Pauri Garhwal district of Uttarakhand. Its best option to spend weekend in spring and Summer vacations. This small hill station at an height of 1700m fascinates travelers and offers some of the best views of central Himalaya and its snow clad peaks.

Summers in the town of Khirsu run through the months of April, May and June, and these three months will experience a maximum temperature of around forty five degrees (45°C) and a minimum temperature of around twenty nine degrees (29°C). This is a good time to visit the hill station and make  your vacations with full joy.At khirsu you can find best Hotel easily in chef  and cost-effective range.


2. - Lansdowne- Lansdowne is a perfect getaway to spend your holiday and honeymoon. An best destination to spend the relaxing moments with your family and friends. Located at an altitude of 1700m above sea level, this small hill station offers the best views of snow-laden peaks of Mt. Kedarnath and Chaukhamba. The War Memorial, at the Parade Ground of the Garhwal Rifles Center is an attraction for the visitors. Places of interest around the city are Tip n Top View Point offers excellent views of surrounding Shivalik Hills.

3. - Hemkund Sahib: - Only 2.1 miles from the attention-grabbing Valley of Flowers (VOF), Hemkund Sahib is the highest Gurdwara of the Sikh community. It is located at an height of around 4329 m above sea level. This holy place is situated in the bank of a pristine lake which is watered by the melting Himlayan snow. The shrine is surrounded by seven peaks – known as the Sapt Sring. It is believed that the tenth Guru of the community, Guru Govind Singh Ji meditated on the hills of Hemkund and thus the abode is dedicated to this great soul. The shrine is built in star shape and the vicinity is fascinating. One can complete trekking to Valley of Flowers and can reach at Hemkund for relaxation.









4. - Valley of Flowers: -For the nature worshippers of the neighboring regions to Uttarakhand, the Valley of Flowers National Park is a paradise. This famous World Heritage Site is located at an elevation of 3658 m above sea level and covers an area of 87.50 sq km of Myriad Alpine flowers. This unlimited land of multihued flowers is perched with many nameless species of flowers including some of the significant species like Brahmakamal, Cobra Lily, Blue Poppy and a lot more. Other than nature lovers, this can be a paradise for Botanists. Trekking is the ideal way to explore this myriad flower bed. This 3 days trek passes through the precarious cuts on the mountain sides and edges the serpentine source of river Ganga. The trek starts from Govind Ghat and ends at Ghangria.

5 - New Tehri: -The only planned city of Uttarakhand, New Tehri is a renovated form of Old Tehri Town. Mainly visited by the dwellers of plains in summer for its pleasant weather, this modern town is spread over an altitude of 1,550-1,950 m above sea level. Tehri Dam is known to be the tallest dam in India. The panoramic views of Chamba are spectacular.

Bhunkhal Mela - Famus Slaughtered Animals Fair of Uttakhand

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Patani (Garhwal). Most fairs held throughout the Garhwal-traditions are based on different historical narratives. According to tradition, during the festival events is the custom of sacrificing animals. Bunkhal such fair is fair. Goats at the fair, including hundreds of lives annually male buffalo is taken in the name of Shakti (Maa Durga) worship. Garhwal is also known by the name of Atvadhe fairs.

Almost four hundred years old tune-up bunkhal fair remains the challenge for the administration. Long effort yet to stop bringing sacrifices doesn’t see color. Hundreds of years away from the rural tradition in the mood for compromise are not. Due to the fair on Saturday slaughtered remains the State of paralysis in the administration. Although the Administration has to stop sacrificial practice police close to one and a half thousand young, PAC and homgard are deployed

History of the fair

Four hundred years ago, according to legends woman Chopra was born in the village and the village girl children buried in a pit in sport goats and sheep ear cut and put in the pit. The girl appeared in a dream to tell the people of the village that I am buried under the ground and be sacrificed every year. Blue water is Bunkhal sacrificed goats every Saturday but on occasions in hundreds male buffaloes and goats are slaughtered.

Kandoliya Temple (Kandoliya Devata) - Beautiful and Holy Place of Pauri Garwhal

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Uttrakhand land known as a land of God (Devbhomi Uttrakhand )Becouse in Uttrakhand, many Temples and holy place in Uttrakhand like Badrinath, Kedarnath, Gangotri yamunotri, etc. Kandoliya Bada Tample is located a fantastic spot bounded by dense forest of forest range of pauri and 2 Km far from pauri main city. The main temples of the city are Kandoliya Devta, Laxmi Narayan, Kyunkaleshwar Mahadev and Hanuman mandir. Every year, a ‘Bhandara‘ is organized in the premise of the Temple of the Kandoliya Devta and thousands of people from Pauri and nearby villages participate in it. The city is blessed with a number of picnic spots surrounded by ‘Deodar‘ forests and filled with natural beauty viz. Ransi, Kandoliya, Nag Dev, Jhandi Dhar etc.


 The temple of the local goddess, Kandoliya Devta, for whom the Pauri hills are named, is located in a thick forest, 2 km from Pauri on the road to Lansdowne. The walk affords a stunning view of Himalayan peaks and the Gangwarsyun Valley. Majestic oaks, swaying pines and deodars, sprinkles of rhododendrons, shrubs and a variety of flowers lining the road make for a very pleasant, leisurely afternoon stroll to Bubakhal, another 4 km towards Lans downe. Bubakhal is a junction from where several minor roads snake across to the many villages on the slopes of the Kandoliya Hills.

How To reach pauri  Kandoliyo Tample


By Bas – 2- or 3 bas of Uttarakhand Transport Corporation is direct between New Delhi and Pauri. You can take Bas from Kashmiri gate (ISBT) from New Delhi to Pauri Bas Station. After that you can walking 2 Km to Kndoliya Temple.

Tara Kund Lake - Real Attraction of Pauri Garwhal

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Tara kund one of the famous lake of Uttrakhand but almost people don’t know more about Tarakund Lake and Situated at a height of 2200 m. Tarakund is a small picturesque spot amidst lofty mountains and holly area of uttrakhand in the Chariserh Development Area. A small lake and an ancient temple adorn the place. The Teej festival is celebrated with great gaiety when the local people come here to worship and pay homage to God.

.Tarakund is a place with scenic grandeur clubbed with mystic environs. It offers a breathtaking view of the snow white higher Himalayas that is sure to leave any visitor spellbound.
Tarakund is well known for its shimmering lake and a revered ancient temple. Trek to Tarakund is truly captivating and attracts a huge number of tourists from all over the world every year. Thus, the enchanting Himalayan destination of Tarakund more than satisfies both, the trekker tourist and the pilgrim.

How To reach Tarakund Lake
To get to Tarakund, one needs to drive upto Padani which is about 44 km from Pauri. From Padani, Tarakund is a 5 km trek. Other route for Tarakund Lake Pauri to pathani by Local jeep or max is 49 Km And your next stop is Sirtoli Village 4m and Finly you need to go 5 Km for sirtoli VIllage to Tarakund lake.